सुप्रीम कोर्ट ने स्कूल बसों के लिये दिशा निर्देश भी जारी किया है लेकिन उनका पालन कम ही होता है।
आज अगर इस आदेश का पालन किया जाता तो पाँचवी क्लास में पढ़ने वाली एस बी पी विद्या बिहार की मासूम बच्ची सानिया कुमारी आज जिंदगी और मौत से नही जूझती ।
लालयाही निवासी सानिया के पिता रवि कुमार बताया कि बस में बच्चियों को छोड़ने के लिए स्कूल प्रशासन द्वारा 1500 रुपया लिया जाता है पर| अटेंडेंन्त नहीं रहने के कारण बच्ची खुद से रोड क्रॉस कर रही थी जिसके कारण विपरीत दिशा से अज्ञात टेंपो टकराने से दुर्घटना की शिकार हो गई |
बताया जाता है कि स्कूल बस बच्चियों को तड़पता हुआ छोड़कर भाग खड़ा हुआ और दुर्घटना की शिकार बच्ची तड़पते रह गई| स्थानीय लोगों ने परिजन के सहयोग से अस्पताल पहुंचाया|
इस मामले को लेकर कटिहार के जिला पदाधिकारी मिथलेश मिश्रा से जब सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का कटिहार के स्कूलों के द्वारा पालन नहीं करने का सवाल रखा गया तो उन्हीने जाँच भरोसा दिलाया ऒर कहाँ सभी स्कूल बसो मै स्पीड गवर्मेंट लगनी शुरू हो गयी है नये सत्र से पहले सभी स्कूल प्रन्धन के साथ मीटिंग कर बस मै एक सहायक औऱ सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश का पालन किया जाएगा साथ ही कहा की जो भी दोषी है उनपर कायवाही जरूर होगी |
बताते चले कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के अनुसार स्कूल की बस का रंग पीला होना चाहिये बस के आगे और पीछे स्कूल बस लिखा होना चाहिये खिड़कियों पर ग्रिल और शीशा भी होना चाहिए आग बुझाने का इंतजाम बस में होना ज़रूरी है बस में फर्स्ट एड बॉक्स का होना चाहिये स्कूल बस पर स्कूल का नाम, पता और उसका फोन नंबर भी लिखा होना चाहिए बच्चों को चढ़ाने उतारने के लिये स्कूल का एक सहायक या सहायिका भी होना ज़रूरी है बस के दरवाज़े ठीक से बंद होते हैं और चलती बस के दरवाज़ा लॉक होना चाहिए बस में स्पीड गवर्नर लगा होना चाहिये और उसकी स्पीड 40 किलोमीटर प्रतिघंटा से ज्यादा नहीं होनी चाहिये लेकिन इन सभी बातों का शायद ही कोई स्कूल पालन करता है|
कुमार नीरज
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